
भाजपा और कांग्रेस के लिए राजीव प्रताप रूडी की जीत के मायने क्या हैं?
हर्ष वर्धन त्रिपाठी-
कांग्रेस और कांग्रेसी समर्थक बौद्धिकों का दिवालियापन देखिए। खुश हुए जा रहे हैं कि, डॉक्टर संजीव बालियान को हरा दिया।
दरअसल, कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया का चुनाव हुआ और प्रशासनिक सचिव पद पर राजीव प्रताप रूडी के सामने डॉक्टर संजीव बालियान चुनाव लड़े और हार गए। रूडी का इस पद पर 25 वर्षों से कब्जा है।
राजीव प्रताप रूडी दिल्ली के एलीट क्लब के प्रतिनिधि चेहरे हैं। मोदी सरकार में कौशल विकास मंत्री रहे, फिर हटाए गए तो माना गया कि, मोदी-शाह की पसंद नहीं हैं।
इस बार चुनाव में गहमागहमी दो वजहों से रही। पहला- दो भाजपा नेता ही मुकाबले में थे। दूसरा- राहुल गांधी ने रूडी को शुभकामना दी थी और निशिकांत दुबे ने बयान दे दिया कि, यह क्लब सांसदों और पूर्व सांसदों का है, IAS, IFS और पायलटों का नहीं।
राजीव प्रताप रूडी भाजपा सांसद के साथ प्रशिक्षित पायलट भी हैं। कहा गया कि, अमित शाह का वरद हस्त डॉक्टर संजीव बालियान के ऊपर था और निशिकांत दुबे का बयान उसी आधार पर था। अब इस आधार पर ‘बिहार ने गुजराती लॉबी को हैसियत बता दी’ ‘अमित शाह की सारी राजनीति धरी की धरी रह गई’ ‘राजपूतों का वर्चस्व कायम है’ ऐसे-ऐसे नारे गढ़े गए।
कमाल की बात यह भी है कि, रवीश कुमार से लेकर हर कांग्रेसी समर्थक बौद्धिक चोला ओढ़े व्यक्ति ऐसा प्रसन्न हो रहा है कि, केंद्र की सरकार बदल गई हो। कुछेक लोगों ने लिखा- अब समझ में आएगा, मोदी-शाह को। क्लब के चुनाव के पैमाने ही एकदम अलग होते हैं।
एलीट और भदेस की लड़ाई में फिर से एलीट जीता है, यहां तक तो ठीक है, लेकिन इससे आगे मोदी-शाह की राजनीति खत्म हो गई वाली बात कितनी मजबूत है, इससे समझिए कि, कांग्रेस या गैर भाजपा पार्टी का एक भी सांसद या पूर्व सांसद नहीं है जो रूडी को चुनौती देकर ढाई दशक के भाजपा सांसद के दबदबे को समाप्त कर पाता। एलीट वर्ग में भी भाजपा सांसद का ही प्रभाव यह सामान्य बात नहीं है।
अरविंद कुमार सिंह-
कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव को जिन्होंने देखा, वे अच्छी तरह समझ गए थे कि सत्ता प्रतिष्ठान क्या चाहता है। निशिकांत दुबे साहब पूरी शक्ति से बदलाव के लिए अपने ही बिहारी साथी के खिलाफ खड़े थे। पर परिणामों ने आईना दिखा दिया।
बीजेपी के दिग्गज वोट डालने आए, पर बदलाव के लिए खड़े नेता को मिले कुल वोट कुछ अलग बताते है। बेशक यह चुनाव व्यक्तियों के बीच हुआ। पर दलों के बीच बदल रही तस्वीर का ये संकेतक भी है।
श्याम मीरा सिंह-
सच ये है कि अमित शाह की हार यहीं हो चुकी थी। सच ये भी है कि मोदी के पास सरकार में बने रहने का बहुमत बचा ही नहीं है।
वे 2024 चुनाव में खुले तौर पर जनता द्वारा नकारे जा चुके हैं, आज ये बस जोड-घटाव, वोटिंग लिस्ट, चुनाव आयोग, मीडिया और उद्योगपतियों के दम पर संसद पर कब्जा किए बैठे हैं।
ये लेट/अबेर यहाँ से भी भगाए जाएँगे। कल कंस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव में सोनिया गांधी ने अमित शाह को हरा दिया। अमित शाह और निशिकांत दुबे ने अपनी ही पार्टी के राजीव रूडी के ख़िलाफ़ पूरे घोड़े लगा दिए। लेकिन सब धरे रह गए।
आज भाजपा के पास कोई वास्तविक बहुमत सरकार में नहीं है। ये ठगों का पिंडारी गिरोह है जिसे एक दिन जाना होगा। इनका समय आ चुका है।
जयशंकर गुप्ता-
मोशा के लिए सबक या चेतावनी! कांस्टीच्युशन क्लब के चुनाव में उनके न चाहते हुए भी उनकी ही पार्टी के सांसद, पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी और उनका पैनल जीत गया। सचिव पद के लिए मोशा के उम्मीदवार कहे जाने वाले पूर्व सांसद संजीव बालियान की शिकस्त हुई।
1200 सदस्यों के इस क्लब में केवल सांसद और पूर्व सांसद ही सदस्य यानी मतदाता होते हैं। पिछले 25 वर्षों से इस क्लब पर रूडी और उनके समर्थकों का ही वर्चस्व रहा है। कई बार वह निर्विरोध भी चुने गये। लेकिन इस बार उन्हें विपक्ष से नहीं बल्कि उनकी अपनी पार्टी से ही गंभीर चुनौती मिली। विपक्ष, इंडिया का परोक्ष समर्थन रूडी के साथ था।
इस चुनाव का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि मतदान में प्रधानमंत्री श्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के साथ ही विपक्ष के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और पक्ष- विपक्ष के भी तमाम अन्य दिग्गजों ने भी हिस्सा लिया। बधाई मित्र राजीव प्रताप।